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Trump Tariffs War : reciprocal tariffs क्या है? क्या भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में आएगा एक नया मोड़ ।।।।

tariff (टैरिफ) एक प्रकार का आयात शुल्क है जो देश की सरकार द्वारा लगाया जाता है ताकि वह अपने देश के उत्पादकों और उद्योगों की रक्षा कर सके और विदेशी उत्पादों के आयात को नियंत्रित कर सके।


tariff (टैरिफ) लगाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण हैं:

- रक्षात्मक उद्देश्य टैरिफ का मुख्य उद्देश्य देश के उत्पादकों और उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना होता है।

- आर्थिक लाभ टैरिफ से सरकार को राजस्व प्राप्त होता है, जिसका उपयोग वह अपने देश के विकास के लिए कर सकती है।

- व्यापारिक समझौतों को प्रभावित करने के लिए टैरिफ का उपयोग व्यापारिक समझौतों को प्रभावित करने के लिए भी किया जा सकता है, जैसे कि व्यापारिक साझेदारी को बढ़ावा देने या व्यापारिक मतभेदों को हल करने के लिए।


टैरिफ के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कि:

- व्यापार युद्ध टैरिफ के कारण व्यापार युद्ध शुरू हो सकता है, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

- कीमतों में वृद्धि टैरिफ के कारण आयातित उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को नुकसान हो सकता है।


प्रतिशोधात्मक टैरिफ (Reciprocal Tariffs) क्या है:

प्रतिशोधात्मक टैरिफ (Reciprocal Tariffs) एक प्रकार का व्यापारिक प्रतिबंध है जिसमें एक देश दूसरे देश द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में समान टैरिफ लगाता है। यह एक प्रकार की व्यापारिक रक्षा नीति है जिसका उद्देश्य अपने देश के उत्पादकों और उद्योगों की रक्षा करना होता है ।


प्रतिशोधात्मक टैरिफ के उदाहरण:


1. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: 

2018 में, अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर टैरिफ लगाया, जिसके जवाब में चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर समान टैरिफ लगाया।

2. भारत-अमेरिका व्यापार तनाव: 

2020 में, अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर टैरिफ लगाया, जिसके जवाब में भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाने की धमकी दी।


प्रतिशोधात्मक टैरिफ के प्रभाव:


1. व्यापार में कमी: 

प्रतिशोधात्मक टैरिफ के कारण व्यापार में कमी आ सकती है, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है ।

2. उत्पादकों को नुकसान: 

प्रतिशोधात्मक टैरिफ के कारण उत्पादकों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि उन्हें अपने उत्पादों को अधिक महंगे दामों पर बेचना पड़ सकता है ।

                             डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीति ने भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में एक नया मोड़ ला दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी बहुप्रतीक्षित "प्रतिगामी टैरिफ" नीति लागू करने की समयसीमा तय की है, जिससे भारत को अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करने के लिए दबाव का सामना करना पड़ रहा है।


विस्तार से जानें:

अमेरिका ने अपनी रिपोर्ट में भारत की उन नीतियों को व्यापारिक बाधा करार दिया, जो 'मेक इन इंडिया' जैसे अभियानों के तहत स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देती हैं। उच्च सीमा शुल्क (टैरिफ), जटिल लाइसेंसिंग प्रक्रियाएं, आयात प्रतिबंध और डिजिटल नियम—ये वो मुद्दे हैं, जिन पर अमेरिका ने उंगली उठाई है।

भारत ने अभी प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाने से परहेज किया है, लेकिन अमेरिका की टैरिफ नीति के जवाब में वह अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करने के लिए दबाव का सामना कर रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में यह तनाव कैसे सुलझता है।

भारत के बारे में बोलते हुए, राष्ट्रपति ट्रम्प ने टैरिफ को "बहुत कठिन" बताया। उन्होंने आगे कहा, "उनके प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) हाल ही में (अमेरिका) गए... वह मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन मैंने उनसे कहा कि 'आप मेरे दोस्त हैं, लेकिन आप हमारे साथ सही व्यवहार नहीं कर रहे हैं'। भारत हमसे 52 प्रतिशत शुल्क लेता है, इसलिए हम उनसे उसका आधा-26 प्रतिशत शुल्क लेंगे।

राष्ट्रपति ने यूरोपीय संघ से आयात पर 20 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका के दो मुख्य व्यापार भागीदारों और सहयोगियों ब्रिटेन से 10 प्रतिशत शुल्क लगाने की भी घोषणा की। जापान पर भी उन्होंने 24 प्रतिशत शुल्क लगाया।






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